आठवीं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ

विज्ञप्तिहरिद्वार। उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय एवं इण्डियन एसोसिएशन आॅफ योगा के संयुक्त तत्वाधान में ‘योग एवं संस्कृत द्वारा मानव उत्कर्ष’ पर आयोजित आठवीं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ आज प्रातः 10ः00 बजे, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के सभागार में हुआ।शुभारम्भ सत्र में सर्वप्रथम आठवीं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के अध्यक्ष प्रो0 कामाख्या कुमार द्वारा मंचासीन विद्वानगणों एवं अतिथियों का स्वागत किया। अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के शीर्षक पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए योग एवं संस्कृत के सम्बंध की व्याख्या करते हुए किशोरावस्था, अनुशासन एवं संस्कारों की उपयोगिता को आज की महत्वपूर्ण आवश्यकता बताया।स्ंगोष्ठी की स्मारिका एवं अन्तर्राष्ट्रीय रिसर्च जर्नल का विमोचन मंचासीन विद्वानों यथा प्रो0 देवी प्रसाद त्रिपाठी, कुलपति, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री गिरीश अवस्थी, कुलसचिव, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार, प्रो0 कामाख्या कुमार, अध्यक्ष, योग विज्ञान विभाग, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार, प्रो0 ईश्वर भारद्वाज, पूर्व संकायाध्यक्ष, योग एवं मानविकी विभाग, गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार, प्रो0 जी0डी0 शर्मा, पूर्व संकायाध्यक्ष योग, पातंजली विश्वविद्यालय, हरिद्वार, प्रो0 के0 कृष्णा, मैंगलोर विश्वविद्यालय, मंैगलोर एवं प्रो0 मीरा शर्मा, लंदन द्वारा किया गया।प्रो0 के0 कृष्णा ने अपने उद्घाटन वाचन में योग एवं संस्कृत पर बताया कि योग केवल आसन नहीं है उससे कहीं अधिक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान है। उन्होंने बताया कि संस्कृत के विद्वानों ने आसानों के जो नाम रखें है उन्हें अंग्रेजी में रूपान्तरण करने पर उसके अंग्रेजी नाम का ही प्रयोग किया गया उदारणार्थ पदमासन को लोटसपोज कहा गया है, क्योंकि उससे ज्यादा अच्छा नाम हो ही नहीं सकता। यहीं हमारी संस्कृत की उदारता एवं पौराणिकता है अर्थात संस्कृत भाषा अपने आप में पूर्ण है।प्रो0 जी0 डी0 शर्मा ने अपने वाचन में बताया कि सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् ही मुक्त प्रवाह से बहता अमृत है। संस्कृत देववाणी है। जिसमें निष्ठा, समर्पण एवं सद्विचार है वह अपनी जिज्ञासा से स्वतः ही ज्ञान प्राप्त कर सकता है। योग एवं संस्कृत से ही हमें ज्ञान की प्राप्ति सम्भव है।प्रो0 ईश्वर भारद्वाज ने बताया कि आचार से ही आचार्य बनते है इसके लिए हमें नैतिक मूल्य के साथ एक सतत् सद्विचारधारा की आवश्यकता होती है। हमें योग एवं संस्कृत के द्वारा पशु से मनुष्य, मनुष्य से देवत्व की ओर बढ़ना है जिसका रास्ता हमें हमारे संस्कार, संस्कृति, संस्कृत ही उपलब्ध कराती है। संस्कृत का सीधा सम्बंध योग से है योग से सब सम्भव है।डाॅ0 मीरा शर्मा ने बताया कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। विश्व में तीन भाषाओं को पौराणिक माना जाता है जिसमें संस्कृत सर्वप्रथम है। संस्कृत से उत्पन्न स्पन्दन से मस्तिष्क में विशेष तरंगों का आवाहन होता है जिससे नकारात्मकता दूर होने लगती है और सकारात्मकता में वृद्धि होती है। जिसके कारण वैज्ञानिकों ने ‘द संस्कृत इफेक्ट’ नाम से वैज्ञानिक संस्कृत को सम्बोधित करना प्रारम्भ कर दिया है। ज्ञान वह नहीं जो हमने बाहर से जाना, ज्ञान वह है जो हम हमने अन्तस् से प्राप्त करते है।प्रो0 देवीप्रसाद त्रिपाठी, कुलपति महोदय ने अपने अध्यक्षीय वाचन में बताया कि अनुशासन से हमें गति प्राप्त होती है। जिसके लिए उन्होंने शरीर-वाणी-मन से कर्म करने की बात कहीं। अनुशासन से ही योग में सफलता की प्राप्ति होती है। पाणिनी द्वारा उद्धृत संस्कृत व्याकरण को उस समय के तक्षशीला विश्वविद्यालय द्वारा सर्वश्रेष्ठ व्याकरण माना गया था। संस्कृत की और अधिक व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि 16 संस्कारों को जब हम समय से करते हुए अपने बालक-बालिकाओं का पोषण करते है तो वह सर्वश्रेष्ठ होकर उभरते है क्योंकि वह हमारी संस्कार-संस्कृति से पोषित हुए है। अंग्रेजी वर्णमाला में 26 अक्षर है तो संस्कृत वर्णमाला में 64 होते है जिससे मस्तिष्क के सभी भाग जागृत होने लगते है। संस्कृत हमारी व देवों की मूल भाषा है। अपने द्वारा अपनाये गये अथवा किए गये गलत कार्यों को छोड़ना होगा तभी हम दूसरे अच्छे कार्योे का कर पायेंगे। अंत में कहा कि योग व संस्कृत से ही मानव में उत्कृष्ट उत्थान की ओर जाया जा सकता है, इसलिए हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को गुरूकुल शिक्षा पद्धति की ओर अग्रसर करना होगा।अंत में गिरीश अवस्थी, कुल सचिव, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार द्वारा सभी विद्वतजनों को धन्यवाद करते हुए उद्घाटन सत्र का समापन किया।कार्यक्रम में देश-विदेश से आए हुए पांच सौ से अधिक विद्वानों एवं छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। मंच का संचालन डाॅ0 राकेश कुमार द्वारा सफलतापूर्वक किया गया। कार्यक्रम में डाॅ0 लक्ष्मी नारायण जोशी, डाॅ0 शुधांशु वर्मा, राजेन्द्र नौटियाल, अनुपम कोठारी, शिवचरण नौडियाल, मोहित, आशीष सेमवाल, रितेश कुमार, शौष्ठव शर्मा, अनूप बहुखंडी, अंजना उनियाल, पूजा देवी आदि उपस्थित रहें।